Wednesday, October 7, 2015

अलविदा

जिसका जो जो 
मेरे पास है
सब लौटा रही हूँ
कल मैं घर से
कहीं दूर जा रही हूँ
जो भी तोहफे
प्यार के पर्चे
फूलोकेगुच्छे
ढेर से वादे
झूठे-सच्चे
भीनी यादें
अनकही बातें
सब उम्मीदें
और ख्वाहिशें
इस संदूक से निकाल कर
सब और फैला रही हूँ
मैं कल घर से
कहीं दूर जा रही हूँ
इन्हे सजालेना
सुंदर हैं
फूलोंकी तरह ये नाज़ुक हैं
मेरी ही तरह
अति भावुक हैं
काँटों को अनदेखा कर
प्यार की धूप, समय के पानी
से हो सके तो महका लेना
पर इनके रहते गर बादल उमड़ें
दिल में बद-हवासी घुमड़े
तो तस्वीर मेरी की ढाल बना कर
कुछ आँसू छल्का लेना
मॅन को डपट, मना लेना
ना जाने क्यूँ
तुम्हे यह सब समझा रही हूँ
मैं कल घर से
कहीं दूर जा रही हूँ
तुम सोचोगे मैं पागल हूँ
बेमानी सी घायल हूँ
हो सकता है
कुछसच भी होगा
पर जाते हुए इक बात बता दूं
चेहरे की बेबाक मायूसी
बिखरे मोती
हँसी रूआनसी
कब से आँचल पकड़े हैं
लहरें, जो आँखें जकड़े हैं
इन सब को कहीं उडेल कर
रूह नयी सी सुहेल कर
हो ना हो 
वापिस आ रही हूँ
मैं कल घर से
कहीं दूर जा रही हूँ

No comments:

Post a Comment

Thanks for stopping by and investing your time here. Please feel free to think aloud as you post your comment.