क्यूँ है ज़रूरी, दर्द में लिखना,
दीवारों से बातें करके
फिर सुबह गुलज़ार सा दिखना
टूटे बिखरे सपनों पर फिर
उम्मीद की चादर बुनना
रात की गहरी जम्हाई को
चाय की प्याली से ढकना
खुशियों की दीवार बनाकर
सीध में चलते तो अच्छा था
काँटों को रंगदार बनाकर
गुंचे चुनते तो अच्छा था
क्यूं था ज़रूरी
बिन बातों का
जाल बनाकर ग़ुम हो जाना
क्यूं है ज़रूरी
हर माज़ी का साया बनकर पीछे आना
कंधे पर सर को फिर रखकर
कानों में बेज़ार सा गाना
बिन बातों, उन् जज्बातों को
झाड़ गिराते तो अच्छा था
झाड़ गिराते तो अच्छा था
घर, कूचे, गलियों, बागों में
हाथ छुड़ाते तो अच्छा था
जब दिल था मुक़द्दस
पाक थे रिश्ते
तब ही मुड़ जाते तो अच्छा था
लौट के आये बस इस बाबत
वोह मिल जाए जो सच्चा था
बचपन ने जो नोच के खाया
भोला सा वो इक बच्चा था!
लौट के आये बस इस बाबत
वोह मिल जाए जो सच्चा था
बचपन ने जो नोच के खाया
भोला सा वो इक बच्चा था!
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